संसद भवन में फिर से स्थापित किया गया 'सेंगोल', विपक्ष ने हटाने की मांग की| जानें राजदंड 'सेंगोल' का इतिहास

संसद भवन में फिर से स्थापित किया गया 'सेंगोल', विपक्ष ने हटाने की मांग की| जानें राजदंड 'सेंगोल' का इतिहास

डेली न्यूज़ मिरर

नई दिल्ली| 27 जून 2024| अनामिका राय

18वें लोकसभा के पहले सेशन के साथ सेंगोल एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। संसद भवन में स्थापित ऐतिहासिक राजदंड 'सेंगोल' पर फिर से सियासी घमासान शुरू हो गया है। विपक्षी पार्टियों ने स्पीकर के सीट के पास स्थापित सेंगोल को फिर से हटाने की मांग की है। विपक्ष का कहना है कि सेंगोल राजशाही का प्रतीक है इसे संसद से हटाकर उसकी जगह संविधान रखना चहिए। सपा सांसद आरके चौधरी ने कहा सेंगोल का मतलब राजदंड है यानि राजा का डंडा। संसद में अब राजा का डंडा नहीं चलेगा बल्कि देश संविधान के मुताबिक चलना चाहिए।

जानें सेंगोल का इतिहास

सेंगोल एक प्राचीन भारतीय राजदंड (sceptre) है, जिसे सोने से बनाया गया था। इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया था। इसके बाद इसे इलाहाबाद संग्रहालय में रख दिया गया था। सेंगोल को बनाने में 800 ग्राम सोने का प्रयोग किया गया था, और इसे जटिल डिजाइनों से सजाया गया है। यह राजदंड चांदी से बना है और उसकी लंबाई लगभग 5 फीट (1.5 मीटर) है। इसके शीर्ष पर नंदी की नक्काशी की गई है, जो हिंदू धर्म में एक पवित्र पशु और शिव के वाहन के रूप में जाना जाता है। इसे धर्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिसे पुराणों में एक बैल के रूप में व्यक्त किया गया है। इसका इतिहास और महत्व भारतीय संस्कृति और इतिहास के अंदर महत्वपूर्ण है।