जलियांवाला बाग हत्याकांड के स्मृति दिवस पर शहीदों को शत शत नमन | आइए जानते हैं इतिहास के उस काले दिन के बारे में

जलियांवाला बाग हत्याकांड के स्मृति दिवस पर शहीदों को शत शत नमन | आइए जानते हैं इतिहास के उस काले दिन के बारे में
जलियांवाला बाग मेमोरियल, पंजाब

डेली न्यूज़ | mirror

नई दिल्ली | शनिवार, 13 अप्रैल 2024 | अनामिका राय

13 अप्रैल 1919 को देश भर में जलियांवाला बाग नरसंहार जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है का आज स्मृति दिवस मनाया जा रहा है। यह वीभत्स हत्याकांड पंजाब के जलियांवाला बाग में बैशाखी के दिन आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में शामिल लोगों पर अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के गोली चलाने के आदेश पर किया गया था। जिसमें अंग्रेज सैनिकों ने भरी भीड़ पर अंधाधुन गोलियां चलाकर हजारों निहत्थे पुरुष, महिला और बच्चों को गोलियों से तब तक छलनी किया जब तक उनकी गोलियां नही खत्म हो गई। ब्रिटिश सरकार के अभिलेख के अनुसार इस घटना में 369 लोगों के मारे जाने और 200 लोगों के घायल होने की बात स्वीकार की गई हैं, जबकि अनाधिकारिक तौर पर इस घटना में 1500 से अधिक लोग मारे गए थे और 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे। कहते हैं की लोग अपनी जान बचाने के लिए पास के एक कुएं में कूद गए थे, जिसमें से बाद में करीब 150 लोगों का शव मिला था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास में एक कलंकित घटना है। आज 13 अप्रैल 2024 को इस हत्याकांड का 105वा शोक दिवस मनाया जा रहा है, जिसमें उन तमाम शहीदों को पूरा देश श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। इस घटना पर तत्कालीन विश्व भर के नेताओं ने इसकी भर्त्सना की थी और अंग्रेजों के क्रूर चरित्र पर सवाल उठाए थे।

आपको बता दें कि यह सभा 13 अप्रैल 1919 को स्वतंत्रता सेनानी नेता सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की रिहाई का अनुरोध करने जिनको रौलट एक्ट के तहत बिना सबूत और गवाह के गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके लिए जलियांवाला बाग में लगभग 10000 पुरुष, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई थी।

जाने क्या था रौलेट एक्ट:

क्रांतिकारी अपराध अधिनियम जिसे रौलेट एक्ट या काला कानून के नाम से भी जाना जाता है, यह अंग्रेज सरकार द्वारा 10 मार्च 1919 को पारित किया गया था, जिसके तहत सरकार किसी भी व्यक्ति को जो देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त था या जिससे अशांति फैलने का डर था, को बिना मुकदमा चलाए कैद करने का अधिकार मिल गया था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के परिणाम:

इस हत्याकांड के विरोध में रविंद्र नाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा दी गई नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया था। इस हत्याकांड के बाद अनेक स्थानों पर सत्याग्रहियों ने अहिंसा का परित्याग कर आंदोलन के लिए हिंसा का मार्ग अपना लिया था। महात्मा गांधी ने इस घटना के विरोध में कैसर-ए-हिंद की उपाधि वापस कर दी और 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।