2024-25 सीज़न के लिए कच्चे जूट के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी | जानें भारत में जूट उद्योग की वर्तमान स्थिति
भारतीय जूट निगम लिमिटेड कलकत्ता में स्थापित है।
Daily News Mirror
Editorial | रविवार, 17 मार्च 2024 | Richa Singh
भारतीय जूट निगम को 2024-25 सीज़न के लिए कच्चे जूट के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की मंजूरी मिल गई। एमएसपी तय करने के सिद्धांत की घोषणा सरकार द्वारा बजट 2018-19 में की गई थी जो कृषि लागत मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित थी।
2024-25 सीज़न के लिए कच्चे जूट का एमएसपी 5,335/- रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में रु. 285/- प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई है। 2014 -15 से 2024-25 तक सरकार ने 10 वर्षों में 122% की वृद्धि स्थापित करते हुए रू 2,400 प्रति क्विंटल से बढ़ाकर रू 5,335 प्रति क्विंटल कर दिया गया है।
कच्चे जूट का देश के अर्थव्यवस्था में योगदान
कच्चा जूट देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह कपड़ा उद्योग, कागज उद्योग, मिट्टी बचाने वाले के रूप में उपयोग, कालीन बैंकिंग कपड़ा, कंबल, सजावटी कपड़े, फर्श कवरिंग, और शॉपिंग बैग आदि जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए एक बहुमुखी कच्चे माल के रूप में उभरा है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की एक रिपोर्ट के माध्यम से, यह अनुमान लगाया गया है कि जूट उद्योग संगठित मिलों, तृतीयक क्षेत्र और संबद्ध गतिविधियों सहित विविध इकाइयों में 0.37 मिलियन श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है और लगभग 4.0 मिलियन कृषक परिवारों की आजीविका का समर्थन करता है।
भारत में जूट उद्योग की चुनौतियां
भारत में जूट उद्योग से जुड़े व्यापारियों को जूट की मांग और कीमतों गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। जिसका मुख्य कारण चीनी उद्योग द्वारा 1987 के जूट पैकेजिंग मैटेरियल एक्ट (JPMA) का अनुपालन न करना है। इस अधिनियम के तहत कम से कम 20% चीनी को पर्यावरण अनुकूल जूट बैग में पैक करना अनिवार्य है परंतु चीनी उद्योग ने इसकी जगह लागत प्रभावी प्लास्टिक बैग को चुना है जिससे जूट के प्रोडक्ट्स की मांग तेजी से घटी है और किसानों को अपने उत्पाद लागत से काफी कम कीमत पर बेचने को मजबूर करती है।
जूट उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयास
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसे जूट विकास कार्यक्रम की विभिन्न योजनाओं में जूट उत्पादन के महत्व का उल्लेख किया गया है, जो 9 राज्यों अर्थात आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, मेघालय, नागालैंड, उड़ीसा, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 2014-15 से उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की बात करता है। एक अन्य महत्वपूर्ण योजना कृषि विकास योजना है जहां कोई भी राज्य अपने राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति की मंजूरी के साथ जूट कार्यक्रम शुरू कर सकता है।
जूट पर MSP बढ़ने से क्या लाभ हो सकते हैं
पर्यावरणीय स्थिरता के मामले में जूट एक विशेष स्थान रखता है, सिंथेटिक मैटेरियल की तुलना में जूट से बने उत्पाद पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक के बैन होने से और अब एमएसपी बढ़ने से जूट उद्योग कम लागत पर इसका विकल्प प्रदान कर सकते हैं जिससे जूट से जुड़े उद्योग को फिर से फलने फूलने में मदद मिल सकती है। कच्चे जूट के एमएसपी में वृद्धि से पूर्वी राज्यों विशेषकर पश्चिम बंगाल के किसानों को बहुत लाभ होगा।
जूट के MSP बढ़ाने के साथ भारत सरकार ने और भी कई योजनाओं की शुरुआत भी की है, लेकिन फिलहाल सरकार को इसके लिए और भी दृढ़ प्रयास करने की आवश्यकता है।।
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