लोकसभा चुनाव को लेकर यूएन के अधिकारी की टिप्पणी को लेकर नाराज हुआ भारत, जानिए क्या है वजह

यूएन के अधिकारी द्वारा लोकसभा के चुनाव पर टिप्पणी को लेकर भारत ने दिया करारा जवाब

लोकसभा चुनाव को लेकर यूएन के अधिकारी की टिप्पणी को लेकर नाराज हुआ भारत, जानिए क्या है वजह

डेली न्यूज मिरर

INDIA: 5 March 2024

भारत में आगामी लोसाभा चुनाव इसी वर्ष अप्रैल में होना तय माना जा रहा है। इसे लेकर तमाम सियासी दलों ने अपने चाणक्य नीति के सहारे समीकरण बैठने शुरू कर दिए है। इसी बीच भारतीय लोकसभा चुनाव अंतराष्ट्रीय बाजार भी गर्म करता नजर आ रहा है। हालांकि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते ऐसा होना स्वाभाविक भी था। लेकिन इस बार कुछ और वजह उभर कर सामने आई जिसमे भारतीय लोकसभा चुनाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश किया का जा रहा है।

जानिए क्या है वो वजह

दरअसल मंगलवार को जेनेवा में ह्यूमन राइट्स काउंसिल का 55वा सेसन चल रहा था। इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर  टूर्क का एक विवादित बयान सामने आया। अपने बयान में टूर्क ने कहा कि 96 करोड़ मतदाताओं के साथ भारत का आगामी चुनाव अनोखा है, वो इस देश की धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक परंपराओं और और इसकी महान विविधता की सराहना करते है। लेकिन इसके साथ उनकी कुछ चिंताएं भी है। उन्होंने कहा कि भारत में नागरिकों के अधिकारों पर बढ़ती पाबंदियों के साथ - साथ, मानवाधिकार कार्यकर्ताओ,पत्रकारों को निशाना बनाए जाने, तथा अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानो के खिलाफ नफरती भाषण और भेदभाव के बारे में चिंता ब्यक्त करते है।

वो यही नहीं रुके।  उन्होंने अपने बयान में रूस ,ईरान, सेनेगल, घाना, पाकिस्तान समेत 60 देशों में हो रहे इस वर्ष के चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि, भारत में नागरिकों के लिए खुले माहौल की तब और जरूरत हो जाती है जब वहां चुनाव हो रहे हों। इस बयान से उनका मतलब यह निकाला जा रहा है कि चुनाव से पहले या चुनाव के वक्त भारत में नागरिकों के लिए खुला माहोल नही रहता है।

जानिए क्या रही भारत की प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधी अरिंदम बागची ने इस सेसन के दौरान भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने टूर्क के बयान का संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि चुनाव के बारे में उनकी चिंताएं अनावश्यक है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वास्तविकता को प्रतिबिंबित नही करती है। उन्होंने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र में तर्क- वितर्क स्वाभाविक है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ऑथोरिटी के पदो पर बैठे लोग अपने फैसले को प्रोपोगेंडा से प्रभावित न होने दें। बहुलता, विविधता समावेशिता हमारे लोकतंत्र के मुख्य नीति का हिस्सा है और संवैतलधनिक मूल्यों में निहित है।