सियासत का अखाड़ा उत्तर प्रदेश: एक ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी, जो खुद को कहता था चोर 

सियासत का अखाड़ा उत्तर प्रदेश: एक ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी, जो खुद को कहता था चोर 
File Photo

Daily News Mirror

नई दिल्ली | शनिवार,08 मार्च 2024 | मयंक कुमार

2024 लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है, सियासी बिसात बिछ गई है और शह- मात का खेल जारी है। इस चुनावी माहौल में हम इस खास स्टोरी में आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में बताएंगे जो खुलकर कहते थे 'गली- गली में शोर है, चंद्रभानु गुप्ता चोर है।' ये कहानी उस दौर की है जब चंद्रभानु गुप्ता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। चंद्रभानु गुप्ता तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। एक समय में उन्हें लखनऊ का पूरक माना जाता था। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि विरोधी जब उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे तो वे हंसी में उड़ा देते थे।

विरोधियों के आरोप पर खुद का ही मजाक बनाते थे सीएम

उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता चंद्रभानु गुप्ता तीन बार सूबे के मुख्यमंत्री बने। एक जमाने में चंद्रभानु गुप्ता और लखनऊ एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे। उनके कार्यकाल में। उनपर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे, पर चंद्रभानु गुप्ता विपक्षियों के आरोपों को खुद ही हंसी में उड़ा देते थे और अपना मजाक खुद बना लेते थे। मजाक में वो खुद ही बोलते थे 'गली -गली में शोर है, चंद्रभानु गुप्ता चोर है।' लेकिन आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके बैंक खाते में महज 10 हजार रुपए थे।

10 बार गए जेल, शिक्षा से सियासत की पूरी कहानी

चंद्रभानु गुप्ता के निजी जीवन पर नजर डालेंगे तो वह मूल रूप से अलीगढ़ के बिजौली के रहने वाले थे। उनका जन्म 14 जुलाई 1902 को हुआ था। पिता हरिलाल समाज सेवक थे। पिता को देखते हुए उनका भी मन समाजसेवा में रम गया और वे राजनीति में आ गए। चंद्रभानु गुप्ता जीवन भर ब्रह्मचर्य रहे। उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई लखीमपुर खीरी में हुई और उसके बाद वह लखनऊ में ही वकालत शुरू कर दी।

चंद्रभानु गुप्ता आजादी की लड़ाई में भी भाग लिए। सीतापुर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन किया, इस दौरान वे 10 बार जेल गए। मशहूर काकोरी काण्ड के क्रांतिकारियों के बचाव दल में वकीलों में एक चंद्रभानु भी थे।

साल 1926 में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन की। अपनी मेहनत, समर्पण और लगनशीलता के बल पर वह जल्द ही पार्टी में आगे बढ़ गए। पार्टी में उन्होंने कई अहम पदों पर काम किया। उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस में कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी मिली।

सियासी पंडित यह भी बताते हैं कि चंद्रभानु गुप्ता और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच सबकुछ ठीक नहीं था। उन दोनों के बीच बराबर अनबन की खबरें आती रहती थी लेकिन बावजूद इसके चंद्रभानु गुप्ता का यूपी कांग्रेस में काफी बड़ा कद था। उनकी अहमियत इतनी थी कि सभी विधायक उनके सामने नतमस्तक होते थे।

तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने

चंद्रभानु गुप्ता तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पहली बार वो साल 1960 से 1963 तक मुख्यमंत्री बने, उसके बाद फिर 1967 में चुनाव जीतने के बाद 19 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने। तीसरी और आखिरी बार वो 1969 में उत्तर प्रदेश के सीएम की जिम्मेदारी संभाली। 11 मार्च 1980 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

सियासी पंडित आज भी जब उत्तर प्रदेश के सियासी किस्सों का जिक्र करते हैं तो चंद्रभानु गुप्ता का जिक्र जरूर करते हैं। कहा जाता है कि उनके काफी दुश्मन थे और दोस्त काफी कम लेकिन उनके अंदाज निराले थे।।